13 अप्रैल, 2019 को कर्नाटक के कोलार में राहुल गांधी अपने संबोधन के दौरान एक टिप्पणी करते हैं. उसमें वो कहते हैं : ललित मोदी, नीरव मोदी, नरेंद्र मोदी..इन सबके नाम, इन सब चोरों के नाम मोदी-मोदी कैसे है. अभी ढूंढेंगे तो और निकलेंगे..
उसके बाद कई बरस बीतते हैं. बहुत सारे भाषण, रैली और यात्राएं राहुल गांधी करते हैं. इस बीच राहुल गांधी सूरत के निचली अदालत में पेशी के लिए जाना पड़ता है. फिर राहुल 28 फरवरी 2023 को लंदन के केंब्रिज जाते हैं. वहां दुनिया भर की बहुत सारी बातें करने के साथ-साथ वे भारत की लोकतंत्र को ख़तरे में होने की बात भी करते है. यहां से मामला गंभीर होता है. भारत के सत्ताधारी पार्टी इसे लेकर हंगामा करती है. वे इसे साज़िश बताते हैं और राहुल गांधी को विदेशी ज़मीन पर भारत की छवि को खराब करने का आरोप लगाते है. संसद में माफी मांगने पर बहस करते हैं. राहुल गांधी माफी नहीं मांगते हैं. और फिर संसद का कामकाज ही ठप हो जाता है.
बैकग्राउंड
बीजेपी विधायक व पूर्व गुजरात मंत्री पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ एक शिकायत 2019 में दर्ज कराते हैं. पूर्णेश मोदी के मुताबिक 13 अप्रैल 2019 वाली राहुल गांधी की टिप्पणी ने पूरे मोदी समुदाय को बदनाम किया और इसे लेकर पूर्णेश राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मामला अप्रैल 2019 में ही दर्ज कराते हैं. उनका आरोप था कि राहुल ने अपनी इस टिप्पणी से समूचे मोदी समुदाय की मानहानि की है. राहुल के खिलाफ आईपीसी की धारा 499 और 500 (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
इस केस की एक सुनवाई 23 मार्च 2023 को होती है (जो कि 2019 से ही चल रही थी). जैसा कि आपको पता है पूर्णेश राहुल गांधी के 2019 में दी गयी "मोदी बयान" को लेकर सूरत के निचली कोर्ट में पहुंच गए थे. 23 मार्च 2023 को सूरत के निचली अदालत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हरीश हसमुख भाई (एचएच) वर्मा ने राहुल गांधी को दो साल की कैद की सजा सुनाई. हालांकि, न्यायाधीश ने उन्हें जमानत दे दी और उच्च न्यायालय में फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए एक महीने का समय दिया.
इस घटना के बाद कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने ये बयान दिया कि जज को बारबार बदला गया. अब कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी ने कहा है कि वह 2018 में संसद में की गई कथित 'शूपर्णखा' टिप्पणी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर करेंगी. हालांकि अगर मुक़दमा हुआ भी तो इसमें काफी वक़्त लगेगा क्योंकि अभी इसकी शुरुआत भी नहीं हुई है (आर्टिकल लिखने तक)
कौन हैं पूर्णेश मोदी
पूर्णेश मोदी सूरत पश्चिम विधानसभा सीट से लगातार तासरी बार विधायक हैं. मोदी को सितंबर 2021 में भूपेंद्र पटेल की सरकार में सड़क और भवन मंत्री बनाया गया था. मोदी 11 महीने तक भूपेंद्र कैबिनेट का हिस्सा रहे. मंत्रालय के कामकाज में शिकायतें आने के बाद 11 महीने में ही पूर्णेश मोदी का मंत्री पद वापस ले लिया गया. पूर्णेश मोदी 2009-12 और 2013-16 में सूरत नगर बीजेपी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. मोदी को इस क्षेत्र में ओबीसी समुदाय का बड़ा चेहरा माना जाता है.
पूर्णेश मोदी का जन्म 1965 में हुआ था. उनके पिता का नाम ईश्वरलाल मोदी है. मोदी प्रोफेशनल ग्रेजुएट हैं. बी. कॉम करके 1992 में उन्होंने सूरत की सर चौवाशी लॉ कॉलेज से एलएलबी की डिग्री हासिल की. भाजपा नेता पूर्णेश मोदी की संपत्ति क़रीब-क़रीब 1.73 करोड़ रुपये के आस-पास है. उनके नाम 35 लाख से ज्यादा का कर्ज भी है. फिलहाल वे पेशे से वकील हैं.
क्या है क़ानूनी पेच !
सूरत के चीफ जस्टिस ऑफ मजिस्हट्रेट हरीश हसमुख वर्मा ने यह फ़ैसला जनप्रतिनिधित्व अधिनयम 1951 के सेक्शन 8(3) [Representation of People Act 1951, Section 8 (3)] के तहत सुनाया है. CJM का यह आदेश कुछ महत्वपूर्ण संवैधानिक और क़ानूनी मुद्दों को ओर लेकर जाता है. अधिनियम की धारा 8(3) में प्रावधान है कि उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को अगर किसी सांसद या विधायक को दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो तत्काल उसकी सदस्यता चली जाती है और अगले 6 साल तक चुनाव लड़ने पर भी रोक लग जाती है. ऐसे व्यक्ति को सज़ा पूरी किये जाने की तिथि से 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य माना जाएगा. यानि कि कुल 8 वर्ष.
हालांकि, विधानमंडल के वर्तमान सदस्यों के पक्ष में धारा 8(4) में एक अपवाद प्रदान किया गया था जिसके तहत दोषसिद्धि की तारीख से अयोग्यता केवल "तीन महीने बीत जाने के बाद" प्रभावी होती है. उस अवधि के भीतर, MP/MLA उच्च न्यायालय के समक्ष सजा के खिलाफ अपील दायर कर सकते थे. मतलब कि अयोग्यता का आदेश उस आदेश की तारीख से तीन महीने के बाद तक प्रभावी नहीं होगा. अगर इन तीन महीनों के दौरान उसने अपील दायर की, तो अयोग्यता आदेश को अपील के निस्तारण तक आस्थगित रखा जाएगा. इस तीन महीने की व्यवस्था को 2013 में लिली थॉमस बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था. परिणाम यह होता है कि जैसे ही किसी मौजूदा सदस्य को दो साल के कारावास की सजा सुनाई जाती है, उसकी अयोग्यता प्रभावी हो जाती है. बेशक, जब वह सदस्य अपीलीय अदालत से सजा और सजा पर रोक लगाता है, तो अयोग्यता हटा दी जाती है. लेकिन एक पेचीदा कानूनी सवाल उठता है कि क्या वह दोषी ठहराए जाने और सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद सदस्य रद्द हो जाती है.
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडी थंकप्पन आचार्य दी इंडियन एक्सप्रेस से कहते हैं कि इस सवाल का जवाब देने के लिए हमें लिली थॉमस केस की ओर रुख करना होगा. संविधान के अनुच्छेद 103 के अनुसार, यदि कोई प्रश्न उठता है कि क्या संसद के किसी भी सदन का सदस्य अनुच्छेद 102 के खंड (1) में वर्णित किसी भी अयोग्यता के अधीन हो गया है, तो प्रश्न राष्ट्रपति के निर्णय के लिए भेजा जाएगा और उसका निर्णय होगा अंतिम होगा अनुच्छेद 103 खंड (2) के अनुसार किसी भी प्रश्न पर कोई निर्णय देने से पहले राष्ट्रपति चुनाव आयोग की राय लेगा और उस राय के अनुसार कार्य करेगा. अनुच्छेद 102 के अनुसार कई तरह से अयोग्यता उत्पन्न हो सकती है. किसी अपराध के लिए कोई भी सजा जिसके परिणामस्वरूप दो साल या उससे अधिक की कैद की सजा हुई है, अनुच्छेद 102 के तहत अयोग्यता के कारणों में से एक है. इसलिए, आगे कोई कार्रवाई करने से पहले राहुल गांधी की अयोग्यता का प्रश्न राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 103 के अनुसार तय किया जाना चाहिए था. ऐसा पीडी थंकप्पन आचार्य कहते हैं.
पीडी थंकप्पन आचार्य बताते हैं कि राष्ट्रपति के निर्णय लेने के बाद ही अयोग्यता अनुच्छेद 103 के तहत प्रभावी हो सकती है. यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि सर्वोच्च न्यायालय के एक अन्य फैसले में कहा गया है कि अयोग्यता लागू होने से पहले राष्ट्रपति का निर्णय आवश्यक है और अनुच्छेद 101 (3) के तहत सदन में सीट खाली घोषित की जाती है. न्यायालय का कहना है: "हालांकि, अनुच्छेद 101 (3) (ए) में विचारित रिक्तियां तभी उत्पन्न होंगी जब राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 103 (1) के तहत अयोग्यता का निर्णय लिया जाएगा और घोषित किया जाएगा" (उपभोक्ता शिक्षा और अनुसंधान सोसायटी बनाम भारत संघ, 2009). यह फैसला तीन जजों की बेंच ने दिया जबकि लिली थॉमस का फैसला दो जजों की बेंच ने दिया था. इसलिए, अनुच्छेद 103 के तहत, विधायिका के एक मौजूदा सदस्य की स्वत: अयोग्यता नहीं हो सकती है. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8(3) स्वत: अयोग्यता के लिए प्रदान नहीं करती है. यह "अयोग्य घोषित किया जाएगा" और "अयोग्य नहीं होगा" शब्दों का उपयोग करता है. हालाँकि, लोकसभा सचिवालय ने अब एक अधिसूचना जारी की है जिसमें कहा गया है कि राहुल गांधी अयोग्य हैं, जो स्पष्ट रूप से आरपी अधिनियम की धारा 8 (3) के विरोध में है.
अयोग्यता का तत्काल प्रभाव लोकसभा के सचिवालय द्वारा एक घोषणा से होती है कि सीट खाली हो गई है. लक्षद्वीप के मौजूदा सांसद के मामले में शायद ऐसा किया गया था. लेकिन उपभोक्ता शिक्षा मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार यह घोषणा राष्ट्रपति द्वारा अयोग्यता के सवाल पर अपने फैसले की घोषणा के बाद ही की जा सकती है.
एक दंडनीय अपराध के रूप में मानहानि को कई लोकतांत्रिक देशों में समाप्त किया जा रहा है: यह अब यूके, यूएसए या श्रीलंका में अपराध नहीं है. मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के पक्ष में लोकतांत्रिक समाजों में ऐसे विचार प्रबल हो रही है. भारतीय समाज कटुतापूर्ण, विरोधात्मक राजनीति में बहुत अधिक लिप्त होने के कारण इस कानून को समाप्त करने के लिए जोर से बोलने में असमर्थ है. यह एक विडम्बना है कि लोकतंत्र की जननी के वंशज मानहानि के अपराधीकरण के प्रभाव को नोटिस करने में बहुत व्यस्त हैं.
आगे की राह
मानहानि का मुक़द्दमे में अधिकतम 2 साल की सज़ा हो सकती है. ध्यान रहे कि ये 2 साल अधिकतम सज़ा है. राहुल गांधी ने निचली अदालत में कहा कि उनका इरादा लोगों को अपमानित करने का नहीं था. 23 मार्च 2023 को सूरत के निचली अदालत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा ने राहुल गांधी को दो साल की कैद की सजा सुनाई है. गौरतलब है कि अगर ये सज़ा कम नहीं हुई तो राहुल गांधी संसद के बाहर ही रहेंगे और अगले 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. कुछ राजनीतिक एक्सपर्ट का मानना है कि एक आधुनिक लोकतंत्र को मानहानि को एक दण्डनीय अपराध के रूप में बिल्कुल भी नहीं मानना चाहिए. राहुल गांधी को संसद से इतर सड़कों पर उतरना चाहिए. जब संसद में उनका माइक बंद कर दिया जाता है तो उनके पास सड़क ही एक मात्र माध्यम बचता है जिसके जरिए राहुल लोगों तक पहुंच कर अपनी बात जनता तक रख सकते हैं. हाल ही में उनकी भारत जोडो यात्रा हिट रही थी और अब राहुल गांधी दक्षिण से उत्तर के बाद पूरब से पशिम की भारत यात्रा करने का तैयारी कर रहे हैं.
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